टूटता तारा लेखनी प्रतियोगिता -09-Dec-2022
टूटता तारा
रामदीन अपने चार बच्चों और अपनी बीवी के साथ बड़ी हँसी-खुशी रहता था। रोहित, कमल, संजय और जूली उसकी जान थे। बच्चों को जो भी जरूरत होती, वह उसे खुशी से पूरा करता। सब की फरमाइश सर आँखों पर रहती।
एक बार रात में वह अपने बच्चों के साथ छत पर टहल रहा था। जूली को तभी आसमान में एक चमकती हुई पतली सी लकीर की तरह कुछ रोशनी दिखाई दी जो तेजी से भाग रही थी। जूली चहकते हुए बोली - भैया! वह देखो क्या है? पापा! बताओ ना क्या है वह?
रामदीन ने कहा - वह एक टूटता तारा है बेटा।
कमल बोल पड़ा - यह टूटता तारा क्या होता है पापा?
रोहित ने भी कहा - सारे तारे क्यों नहीं टूटते? बाकी तो बस टिमटिमाते रहते हैं।
रामदीन ने कहा - बेटा यह तारा बिल्कुल खास है। जो भी इसे देखता है तो वह इससे अपनी मुरादें माँगता है और यह उनकी मुरादें पूरी कर देता है।
तभी जूली बोल पड़ी - जैसे आप हमारी मुरादें पूरी करते हैं।
रामदीन बेटी की बात पर हँसने लगे।
कमल ने फिर कहा - पापा क्या आप भी हमारे लिए टूटते तारे हैं? तो उनकी माँ ने उन्हें चुप कराते हुए कहा कि बेटा ऐसा नहीं बोलते।
समय बीतता गया। बच्चे अब जवान हो गए थे। कमाने भी लगे थे। समय बीतने और उम्र बढ़ने के साथ उनकी माँगे भी बढ़ गई थी। सभी रामदीन की जीवन भर की गाढ़ी कमाई और मकान पर बँटवारे के लिए नजर गड़ाए हुए थे। आए दिन आपस में झगड़ा होता रहता। इसी बीच चिंता के मारे रामदीन की पत्नी चल बसी। सभी रिश्तेदार घर पर पहुँचे हुए थे। सब जगह मातम पसरा हुआ था। लेकिन वे सब इन सबसे बेफिक्र थे।
माँ को गए अभी कुछ ही दिन बीते थे कि एक दिन बँटवारे की बात को लेकर संजय और कमल में तू तू मैं मैं हो गई।
सभी रामदीन के पास पहुँचे और बोले - आज फैसला हो ही जाना चाहिए। जिसके हिस्से में जो भी आए, दे दीजिए। आखरी बार आपसे अपना अपना हक माँग रहे हैं।
रामदीन आँखों में आँसू लिए नि:शब्द पड़ा हुआ था। जैसे बोलने की शक्ति ही क्षीण पड़ गई हो। उसकी गृहस्थी की गाड़ी का एक पहिया तो पहले ही निकल चुका था और अब पूरी की पूरी की गृहस्थी टूट कर बिखरने वाली थी। काँपते हुए उसने कलम उठाया और वसीयत के कागजात पर दस्तखत कर दिया। वह टूट रहा था, लेकिन जाते-जाते अपना कर्तव्य निभा कर जा रहा था। उसने अपने बच्चों की आखिरी मुराद पूरी जो कर दी थी। बरसों पहले की धुंधली यादें उसके जेहन में ताजा हो गई। आज जीवन के की अंतिम घड़ी में वह एक सत्य से परिचित हो रहा था। सच में वह एक टूटता तारा ही तो था जो मुराद पूरी करते करते बुझ गया।
- आशीष कुमार
मोहनिया, कैमूर, बिहार
Gunjan Kamal
11-Dec-2022 02:16 PM
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति 👌👌
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Pranali shrivastava
10-Dec-2022 09:04 PM
Nice 👍🏼
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Ashish Kumar
11-Dec-2022 08:55 AM
थैंक यू सो मच
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Punam verma
10-Dec-2022 07:57 AM
Nice
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Ashish Kumar
10-Dec-2022 01:24 PM
जी बहुत-बहुत धन्यवाद
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